आख्यान और अद्भुत विवरणों की कथाकार (Saat Kadam)
यह कहना अनुचित नहीं होगा कि मैं प्रवासी कथा साहित्य और विशेषकर कहानी विधा का उत्सुक पाठक रहा हूँ। इस उत्सुकता या रूचि के तंतु, विभिन्न समाजों के सोशियो-कल्चरल कंस्ट्रक्ट के विश्लेषण और उस की विशिष्टता को समझने की मेरी रूचि से जुड़े हैं।प्रवासी कहानियों की तरफ मैं सहज ही खिंचा चला गया। शायद भारतीयता की पड़ताल भी इस जुड़ाव में एक अन्यतम कारण रहा हो।
जय वर्मा की कहानियों से मेरा पहला परिचय ‘सात कदम’ कहानी से हुआ और यकीन मानिये कि मैं कुछ पल यथार्थ के उस पहलु को पढ़ कर स्तब्ध रह गया…सिहरा देना वाला अनुभव। सब से बड़ी बात यह कि जिस भाषा में वह व्यक्त किया गया था, वह अनुपमेय था। ऐसा प्रामाणिक वर्णन कि पाठक से कहानी छोड़ते न बने और उस के जादुई आवरण से बाहर आने की उस की कोई इच्छा न हो, कि वह उस कहानी में बस समा रहे। पाठक का साक्षी भाव तिरोहित कर देने वाली कहानी है वह। इस के बाद उन की अन्य कहानियॉं पढ़ने की इच्छा बलवती हो गयी और फिर मैंने पढ़ी ‘किधर’ कहानी। मंत्रमुग्ध कर देने वाले विवरणों से भरपूर कहानी है यह। वहॉं के समाज के भीतरी सत्यों को भेदती हुए कहानी से वहॉं के परिवेश को समझने की एक नयी दृष्टि मिली।
जय वर्मा के इस कहानी संग्रह को सामाजिक-सांस्कृतिक यथार्थ की विभिन्न परतों को समझने और विवरणों के अद्भुत कौशल के कारण पढ़ा जाना बेहद ज़रूरी है। बेशक, इन कहानियों को प्रवासी कहानी संसार में एक सार्थक हस्तक्षेप के रूप में देखा जा सकता है।
जय वर्मा अपनी आख्यान शैली और सामाजिक-सांस्कृतिक समझ के मामले में एक महत्वपूर्ण कथाकार के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराती हैं। कथाकार को अशेष शुभकामनाएं।
डॉ. अजय नावरिया
क्थाकार और आलोचक