जय वर्मा की कहानियों में उनके अनुभव जगत का साक्षात्कार है। ब्रिटेन की पृष्ठभूमि में रची गई ये सातों कहानियाँ अलग – अलग स्थितियों – परिस्थितियों से रू-बरु कराती हैं। सात कदम में शामिल सभी कहानियाँ अपने कथा फलक को पाठक से तारतम्य ही नहीं बिठाती बल्कि अपने साथ बहा ले जाती हैं। उनकी कहानियों में अलग- अलग स्त्री छवियाँ नए चरित्रों से साक्षात्कार कराती हैं। चाहे वह डोरीन , हिमानी, कमला, इंडिया एवं सोनिया हों या फिर सात कदम की नायिका सिम्मी सब अपने समाज के प्रतिनिधि चरित्र हैं। स्त्री चरित्रों में उनकी गहरी पैठ है। लेखिका अपने पात्रों के वर्ग चरित्र को एकदम स्पष्ट पकड़ती हैं उनका गोल्फ़ कहानी का किरदार भारतीय समाज के लिए नया है। सिम्मी के बहाने हम एक नए स्त्री रूप से मिलते हैं, जिसके लिए पति की अंतिम इच्छा ही पूरा आदेश है। गोल्फ़ कहानी से हम खेल की शब्दावली से परिचित होते हैं। हिमानी जब क़िधर कहानी में कहती है “मुझे यक़ीन है कि परिवार को दाँव पर लगाकर पापाजी प्यार के मार्ग पर नहीं चलेंगे।” परम्परागत स्त्री चरित्र के बरक्स अपने स्वार्थ में डूबे चरित्र के रूप में दिखाई देती है। जो कई बार बुजुर्गों की दशा से रू-बरू होते वर्ग चरित्र का प्रतिनिधि चरित्र है। उनकी इस संग्रह की सभी कहानियाँ पाठकों को कुछ न कुछ ऐसे भाव संवेदनाएं दे जाती हैं जो हमें पात्रों की समस्याओं और सरोकारों के साझीदार बना देती हैं। संग्रह की अन्य कहानियाँ क़िधर, कोई और सवाल, गोल्फ़, गुलमोहर, गूँज, फिर मिलेंगे एवं सात कदम सभी बहुत प्रभावित करती हैं। यह संग्रह पाठकों को देशांतर के नए समय समाज से जोड़ेगा। मेरी असीम शुभकामनाएं।
प्रोफ.नवीन चन्द्र लोहनी
अध्यक्ष हिंदी विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ
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