संवेदनशील मन का प्रस्फुटन
सहयात्री हैं हम
मूल्य : 200/- रुपये
पृष्ठ : 144
प्रकाशक : अयन प्रकाशन,
1/20, महरौली, नई दिल्ली-110030
जय वर्मा ब्रिटेन की प्रमुख हिन्दीसेवी हैं। शायद ही हिन्दी का कोई कवि, वरिष्ठ साहित्यकार ऐसा हो जो नाटिंघम गया हो और उनके घर न रुका हो।
डॉ. महिपाल वर्मा और जय वर्मा की जोड़ी सदा प्रेम और मुस्कराहट के साथ हिन्दी की सेवा में संलग्न रहती हैं। पिछले कुछ वर्षों से जब से हिन्दी के वार्षिक कवि सम्मेलन की परंपरा का विस्तार हुआ तो नाटिंघम में कवि सम्मेलन का संयोजन जय वर्मा ही करती रही हैं। इस प्रक्रिया में उन्होंने मिडलैंड्स के बहुत से हिन्दी प्रेमियों और डॉक्टरों को भी जोड़ा है। उनके द्वारा सृजित वातावरण से रचनात्मक विकास हुआ और जीवन की मधुर, कोमल भावनाएं कविता के रूप में फूटने लगीं।
उनका कविता-संग्रह ‘सहयात्री हैं हम’ का विमोचन अंतरराष्ट्रीय हिन्दी उत्सव के दौरान दिल्ली में किया गया। संग्रह की कविताएं उनके सहज, सुकोमल, संवेदनशील मन का प्रस्फुटन हैं। इन कविताओं में जहां एक तरफ प्रकृति अपने विभिन्न रूपों में विद्यमान है वहीं जीवन के प्रश्नों का विश्लेषण और आध्यात्मिक जिज्ञासा भी दृष्टिगोचर होती है- ”आओ चलें जहां समुद्र से मिलता है आसमां / क्षितिज के उस पार क्या कोई है दूसरा जहां।”
आम प्रवासी की तरह इसमें भारत की याद और उससे दूर होने की पीड़ा भी है- ”अपनी व्यस्त जीवन-चर्या में दिल संवरिया का टूटा होगा / आंखें भी भर आई होंगी जब जिक्र वतन का आया होगा।”
कविता व्यक्तित्व का आईना है जिसमें उनका जीवन और परिवेश अपने सहजतम रूप में अभिव्यक्त हुआ है- ”तन सुख, मन सुख संसार के उतार चढ़ाव की / ये कहानी है कर्म संस्कार और जीवन में बदलाव की।”
अपने व्यस्त व्यावसायिक जीवन के बावजूद उन्होंने हंसती, बात करती, प्रश्न करती कविताओं के माध्यम से अपने परिवेश और मनोजगत से पाठकों को परिचित कराया है।
मैं आशा करता हूं – हिन्दी के पाठक इस प्रवासी कवयित्री के पहले काव्य-पुष्प की गंध का सावन की पहली फुहार की तरह स्वागत करेंगे क्योंकि इसमें वैसी ही सादगी, उत्साह और प्रवाह है।
अनिल शर्मा
दुनिया.कोम